ध्यान क्या है ?
What is meditation ?
ध्यान तो शुद्ध रूप से एक समझ है। यह प्रश्न केवल शांत होकर बैठ जाने का नहीं है। न यह प्रश्न मंत्रजाप करने का है। यह प्रश्न तो मन की सूक्ष्म कार्यविधि को समझने का है। यदि तुम मन की कार्यविधि कोएक बार समझ गये, तुम्हारे अंदर एक बहुत बड़ी जागरुकता या होश का उदय होता है, जिसका मन से कोई संबंध नहीं। इस जागरुकता का उदय तुम्हारे अस्तित्व से, तुम्हारी आत्मा से और चेतनता से होता है।
ध्यान है...खेलपूर्ण होना
ध्यान, बुद्धि या मन की कोई चीज नहीं है, वह तो बुद्धि के पार की कोई चीज है। और इसके लिये पहला कदम है, इसके प्रति खेलप्रिय होना, विनोदी होना। यदि तुम उसके साथ खेलपूर्ण हो, तो बुद्धि (मन) तुम्हारे ध्यान को नष्ट नहीं कर सकती। अन्यथा यह एक दूसरी अहंकार-यात्रा में परिवर्तित हो जायेगी। यह तुम्हें बहुत गंभीर बना देगी। तुम सोचने लगोगे कि मैं एक महान ध्यानी हूँ। यही हजारों कथित संतों नैतिकतावादियों और कट्टर धार्मिकों के साथ हुआ है, ये लोग महज अहंकार के खेल सूक्ष्म अहंकार के खेल ही खेल ही खेल रहे हैं।
इसलिये मैं प्रारम्भ ही से इसकी जड़ें काट देना चाहता हूँ। इसके बारे में विनोदप्रिय या खेलपूर्ण बने रहो। यह एक गीत है जिसे गाना है। एक नृत्य है जिसे नाचना है। इसे एक मजाक की तरह लो। यदि तुम ध्यान के बारे में खेलपूर्ण हो सके तो तुमयह देखकर हैरान हो जाओगे कि ध्यान में दिनदूनी रात चौगुनी प्रगति होगी। केवल तुम किसी लक्ष्य पाने के पीछे नहीं भाग रहे तुम केवल शांत बैठे हुए उसका उस क्षण आनंद ले रहे हो। शांत होकर बैठने का कृत्य ही उन क्षणों में आनंदित होना है। ऐसा नहीं, कि तुम किसी यौगिक शक्ति, सिद्धि या चमत्कार की चाह कर रहे हो। यह सभी बकवास है, यह सभी पुरानी व्यर्थ की बातें हैं। वही पुराना खेल, नये शब्दों और एक नये धरातल पर खेला जा रहा है...जीवन को अपने-आपमें एक गहरे मजाक की तरह लेना चाहिये-और तभी अचानक तुम तनावरहित हो जाओगे,क्योंकि यहाँ कुछ ऐसा ही नहीं, जिसके बारे में तनावपूर्ण हुआ जाये। और इसी विश्रामपूर्ण दशा में तुम्हारे अंदर कुछ परिवर्तन एक मौलिक परिवर्तन एक रूपातन्तरण होने लगता है।
~ ओशो ,
What is meditation ?
ध्यान तो शुद्ध रूप से एक समझ है। यह प्रश्न केवल शांत होकर बैठ जाने का नहीं है। न यह प्रश्न मंत्रजाप करने का है। यह प्रश्न तो मन की सूक्ष्म कार्यविधि को समझने का है। यदि तुम मन की कार्यविधि कोएक बार समझ गये, तुम्हारे अंदर एक बहुत बड़ी जागरुकता या होश का उदय होता है, जिसका मन से कोई संबंध नहीं। इस जागरुकता का उदय तुम्हारे अस्तित्व से, तुम्हारी आत्मा से और चेतनता से होता है।
ध्यान है...खेलपूर्ण होना
ध्यान, बुद्धि या मन की कोई चीज नहीं है, वह तो बुद्धि के पार की कोई चीज है। और इसके लिये पहला कदम है, इसके प्रति खेलप्रिय होना, विनोदी होना। यदि तुम उसके साथ खेलपूर्ण हो, तो बुद्धि (मन) तुम्हारे ध्यान को नष्ट नहीं कर सकती। अन्यथा यह एक दूसरी अहंकार-यात्रा में परिवर्तित हो जायेगी। यह तुम्हें बहुत गंभीर बना देगी। तुम सोचने लगोगे कि मैं एक महान ध्यानी हूँ। यही हजारों कथित संतों नैतिकतावादियों और कट्टर धार्मिकों के साथ हुआ है, ये लोग महज अहंकार के खेल सूक्ष्म अहंकार के खेल ही खेल ही खेल रहे हैं।
इसलिये मैं प्रारम्भ ही से इसकी जड़ें काट देना चाहता हूँ। इसके बारे में विनोदप्रिय या खेलपूर्ण बने रहो। यह एक गीत है जिसे गाना है। एक नृत्य है जिसे नाचना है। इसे एक मजाक की तरह लो। यदि तुम ध्यान के बारे में खेलपूर्ण हो सके तो तुमयह देखकर हैरान हो जाओगे कि ध्यान में दिनदूनी रात चौगुनी प्रगति होगी। केवल तुम किसी लक्ष्य पाने के पीछे नहीं भाग रहे तुम केवल शांत बैठे हुए उसका उस क्षण आनंद ले रहे हो। शांत होकर बैठने का कृत्य ही उन क्षणों में आनंदित होना है। ऐसा नहीं, कि तुम किसी यौगिक शक्ति, सिद्धि या चमत्कार की चाह कर रहे हो। यह सभी बकवास है, यह सभी पुरानी व्यर्थ की बातें हैं। वही पुराना खेल, नये शब्दों और एक नये धरातल पर खेला जा रहा है...जीवन को अपने-आपमें एक गहरे मजाक की तरह लेना चाहिये-और तभी अचानक तुम तनावरहित हो जाओगे,क्योंकि यहाँ कुछ ऐसा ही नहीं, जिसके बारे में तनावपूर्ण हुआ जाये। और इसी विश्रामपूर्ण दशा में तुम्हारे अंदर कुछ परिवर्तन एक मौलिक परिवर्तन एक रूपातन्तरण होने लगता है।
~ ओशो ,

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