Pages

Friday, 30 December 2011

☆ ध्यान :जब भी आपको समय मिले ☆



जब भी आपको समय मिले, कुछ मिनटों के लिये अपनी श्वास-प्रक्रिया को शिथिल कर दें, और कुछ नहीं―पूरे शरीर को शिथिल करने की कोई आवश्यकता नहीं। रेलगाड़ी में बैठे हों या हवाई जहाज में, या फिर कार में, किसी को पता नहीं लगेगा की आप कुछ कर रहे हैं। बस अपनी श्वास-प्रक्रिया को शिथिल कर लें। जब यह सहज हो जाये तो इसे होने दें। तब आंखें बंद कर लें और इसे देखें- श्वास भीतर जा रही है, बाहर जा रही है, भीतर जा रही है...



एकाग्र न करें! यदि आप एकाग्र करते हैं तो आप समस्या पैदा करते हैं क्योंकि तब सब कुछ बाधा बन जाता है। यदि कार में बैठे हुए तुम एकाग्र होने की कोशिश करते हो तो कार का शोर बाधा बन जाता है, आपके पास बैठा व्यक्ति बाधा बन जाता है।



ध्यान एकाग्रता नहीं है। यह मात्र जागरण है। आप बस विश्रांत हो जायें और श्वास को देखें। उस देखने में सब कुछ शामिल है। कार शोर कर रही है―बिलकुल ठीक, इसे स्वीकार करें। ट्रैफिक चल रहा है―ठीक है, जीवन का हिस्सा है। तुम्हारा सहयात्री तुम्हारे साथ बैठा खर्राटे ले रहा है, इसे स्वीकारें। कुछ भी नकारना नहीं।
~ Osho

No comments:

Post a Comment