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Thursday, 29 December 2011

उसे खोजो और पहले उसे अपने हृदय मेँ ही सुनो ।



उसे खोजो और पहले उसे अपने हृदय मेँ ही सुनो ।
आरंभ मेँ तुम कदाचित कहोगे कि यहाँ गीत तो है नहीँ ,
मैँ तो जब ढ़ूंढ़ता हूँ तो केवल बेसुरा कोलाहल की सुनाई देता है ।
और अधिक गहरे ढ़ूँढ़ो ,
यदि फिर भी तुम निष्फल रहो तो ठहरो और भी अधिक गहरे मेँ फिर ढ़ूंढ़ो ।
एक प्राकृतिक संगीत, एक गुप्त जल - स्त्रोत प्रत्येक मानव हृदय मेँ है ।
वह भले ही ढ़का हो, बिल्कुल छिपा हो और नीरव जान पड़ता हो -- किन्तु वह है अवश्य ।
तुम्हारे स्वाभाव के मूल मेँ तुम्हेँ श्रद्धा , आशा और प्रेम की प्राप्ति होगी ।
जो पाप-पथ को ग्रहण करता है ,
वह अपने अंतरंग मेँ देखना अस्वीकार कर देता है 
अपने कान हृदय के संगीत के प्रति मूंद लेता है
और अपनी आँखो को अपनी आत्मा के प्रकाश के प्रति अंधी कर लेता है ।
उसे अपनी वासनाओँ मेँ लिप्त रहना सरल जान पड़ता है ,
इसी से वह ऐसा करता है ।
परन्तु समस्त जीवन के नीचे एक वेगवती धारा बह रही है ,
जिसे रोका नहीँ जा सकता ।
सचमुच गहरा पानी वहाँ मौजूद है , उसे ढ़ूँढ़ निकालो ।
इतना जान लो कि तुम्हारे अन्दर निःसन्देह वह वाणी मौजूद है ।
उसे वहाँ ढ़ूँढ़ो और जब एक बार उसे सुन लोगे ,
तो अधिक सरलता से तुम उसे अपने आसपास के लोगोँ मेँ पहचान सकोगे । 
~ Mabel Collins

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