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Thursday, 29 December 2011

व्यक्तित्व एक कारागृह

मैँ तुम्हेँ वापस उस बिंदु पर फेँक देना चाहता हूँ जहाँ तुम स्वाभाविक होने के विपरीत 'अच्छे ' होने शुरु हो गए । आनंदपूर्ण हो जाओ ताकि अपना बचपन फिर से पा सको। यह कठिन तो होगा, क्योँकि तुम्हेँ अपने व्यक्तित्व को एक किनारे पर छोड़ना होगा। लेकिन याद रखो, मूल तत्व तभी स्वयं को प्रकट कर सकता है जब तुम्हारा व्यक्तित्व वहां न हो, क्योँकि तुम्हारा व्यक्तित्व एक कारागृह बन गया है। उसे एक ओर हटा दो ! यह पीड़ादायी होगा, लेकिन यह पीड़ा झेलने जैसी है क्योँकि उससे तुम्हारा पुनर्जन्म होगा। और कोई भी जन्म बिना पीड़ा के नहीँ होता ।

~ ओशो , प्यारे सद्गुरु

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