
☆ सच्चे फकीर अलहिल्लाज मंसूर की मार्मिक कहानी ☆
मंसूर ईरान में पैदा हुए थे | फिर यह बसरा और बग़दाद में हज़रतजुनैद बगदादी की सोहबत में रहे |जुनैद इनसे कहते थे कि एक दिन वह आएगा जब लकड़ी का एक सिरा तेरे खून से लाल होगा | तब यह कहते थे कि हाँ यह जरुर होगा पर उससे पहले आपको यह फकीराना लिबास उतार फेंकना होगा | लकड़ी के एक सिरे के लाल होने का मतलब सूली पर चढ़ने से था | इन्होने अपना नाम '' हुसैन बिन मंसूर '' मतलब कि मंसूर का बेटा मंसूर रखा था |
इनका पूरा नाम '' हुसैन बिन मंसूर अल हलाज'' था |
यह बहुत बड़े विद्वान् थे | देश देश घूमते रहते थे | पूरे एक साल तक बिना कपडों के रहकर इन्होने सर्दी और गर्मी में तपस्या की |
कहते हैं कि इनका शरीर पिघलने लगा था , फिर भी यह तेज़ धूप में खड़े रहे |
एक बार यह हिन्दुस्तान भी आये थेपर अंत में बग़दाद में रहने लगे| खुदा का इनपर ऐसा नशा था कि एक बार यह '' अनलहक , अनलहक '' कहने लगे , जिसका मतलब है कि- '' मैं ही सच हूँ'' | सबने इन्हें काफिर बताया यह सोचकर कि यह अपने को खुदा बताता है | पर यह नहीं माने --कहते थे कि '' मैं वही हूँ जो कि मुझमें है , इसलिए जब तुम लोग मुझे देखते हो इसका मतलब उस खुदाको देखते हो , इसलिए मैं खुदा का ही तो रूप हूँ '' | मौलवियों ने फतवा जारी किया कि यह काफिर है , इसे सूली पर चढाया जाए | इन्हें कैद खाने में बंद किया गया | खलीफा ने कहा कि जब तक जुनैद बगदादी नहीं लिख देंगे कि यह कत्ल के योग्य है , मैं फतवे पर दस्तखत नहीं करूँगा | तब जुनैद बगदादी को बुलाया गया | उन्होंने परेशान होकर अपने फकीराना कपडे फाड़ दिए और विद्वानों वाले कपडे पहन लिए | फिर हुक्म की तामील की और लिख कर दिया कि '' बाहरी हालात को देखकर कत्ल का फतवा जारी किया जाता है पर अन्दर का हाल खुदा जानता है ''| इस तरह मंसूर की भविष्यवाणी सच साबित हुई |
जब यह कैद में थे लोगों ने बड़े चमत्कार देखे | इन्होने दीवार की तरफ उंगली की और दीवार फट गयी| सब आजाद हो गए और पूछने लगे कि आप यहाँ क्यूँ पड़े हैं ? तब मंसूर ने कहा कि मैं खुदा का कैदी हूँ , इसलिए आजाद नहीं हो सकता | तुम तो एक इंसान के कैदी हो इसलिए आजाद हो सकते हो | सन् ३०९ हिजरी में इन्हें सूली पर चढाया गया | बग़दाद में इतनी भीड़ थी कि हाथ को हाथ नहीं सुझाई देता था | पहले इन्हें १००० कोड़े मारे गए | फिर भी प्राण नहीं निकले तब २००० कोड़े मारे गए | इन्होने सब सहन किया | अंत में सूली पर अपनी जान देनी पड़ी | सच का रास्ता बहुत कठिन होता है | जब इन्हें सूली पर चढाया जा रहा था तब किसी ने पूछा कि इश्क किसे कहते हैं ? इन्होने कहा कि ''आज , कल और परसों देख लेना '' , मतलब कि आज सूली पर लटकाया जायेगा , कल जनाजा उठेगा और परसों उसकी ख़ाक उडाई जायेगी , तब देख लेना कि सच्चा इश्क क्या होता है ? इन्होने सूली को चूमा और कहा कि यह तो खुदा तक पहुँचने कि सीढ़ी है | लोगों ने पत्थर मारने शुरू किये | इन्होने उफ़ तक नहीं की | हज़रत शिबली ने एक फूल मारा और इनकी आह निकल पड़ी |
सबके पूछने पर इन्होने कहा कि लोग नहीं जानते कि वह क्या कर रहे हैं पर शिबली जानते हैं , इसलिए उनका यह फूल भी मुझपर भारीहै | आज लोग गोलियां चलाने में कोई कसर नहीं छोड़ते, बेक़सूर लोगों का खून बहाते हैं , क्यूंकि वह अनजान हैं | वह नहीं जानते कि वह कौन सा गुनाह कर रहे हैं | अगर जानते होते तो फूल भी किसी के ऊपर सोच समझ कर फेंकते कि इससे भी चोट लग सकती है और वह पत्थरों और गोलियों से कहीं ज्यादा दर्द देती है | हर इंसान में खुदा या ईश्वर छुपा है , उस पर गोली चलाना मतलब कि खुदा की या भगवान की बे-अदबी करना है |
जब इनके प्राण निकल गए तब इनके शरीर से खून टपकने लगा और उस खूनसे ज़मीन पर '' अनलहक '' लिख गया | है न अचम्भे कि बात ? तब लोग घबरागए और लाश को जला दिया | कहते हैंकि राख में से भी '' अनलहक '' की आवाज़ आ रही थी | लोग डर गए और राख को दजला नदी में डाल दिया | अनलहक की आवाज़ फिर से आने लगी और नदी में बाढ़ आ गयी | पूरा बगदाद शहर डूबने को था | मगर फकीर को पहले से ही पता था और उन्होंने अपने एक शिष्य से कह रखा था कि ऐसा होगा तब तुम मेरा कुर्ता दजला में डाल देना | उसने ऐसा ही किया ,पानी नीचे उतर गया |
सही मायने में मंसूर सच्चे फकीर थे |
A. P®AGYA » 4 U ♥
वाह ! अत्यधिक प्रेरणादायक | प्रस्तुति के लिए साधुवाद !
ReplyDeleteAre sufi to Aj bhi hai par Aaj kal satya ko jaanne wale kam aur jhut jaanne wale Jada hai
ReplyDeleteSufi to Aaj bhi hai par Aaj kal satya ko jaanne wale kam aur jhut jaanne wale Jada hai kyuki mulla aur pandito ka jamana chal raha hai
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