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Thursday, 29 December 2011

रबिन्द्रनाथ टैगोर की एक खूबसूरत कविता

रबिन्द्रनाथ टैगोर की एक खूबसूरत कविता है जिसमें वे कहतेहैं -
मैं बहुत सारे जन्मों से ईश्वर की खोज करता रहा हूँ। कभी मैंने उसे दूरस्थ तारे केसमीप देखा और मैं अत्याधिक प्रसन्नता से भर गया कि भले ही तारा बहुत दूर था पर उस तक पहुँचना असंभव तो न था। और मैं उस ओर चल पड़ा लेकिन जब तक मैं वहाँ पहुँचता, ईश्वर किसीऔर स्थान की ओर चला गया। लेकिन वह अभी भी दिख रहा था, अपनी ओर आमंत्रित करता हुआ, मेरे अंदर आशा का संचार करता हुआ।
और मैं जन्मों जन्मों से इस ब्रह्मांड के चक्कर लगा रहा हूँ, ईश्वर की प्राप्ति के लिये।
एक दिन ऐसा हो गया कि मैं ईश्वर के घर पहुँच गया। मुझे विश्वास नहीं हो पा रहा था कि मैं वहाँ पहुँच गया था। यह इतने बड़े आश्चर्य की बात थी पर मैं तब भी दरवाजे की ओर बढ़ा। जैसे ही मैं दरवाजा खटखटाने वाला था कि मेरे हाथ जड़ हो गये। मेरे अंदर एक विचार कौंधा – रुको ज़रा, सोच तो लो। दरवाजे पर यह लिखा हुआ है कि यह ईश्वर का घर है। अगर यह वास्तव में ही ईश्वर का घर हुआ तो तुम समाप्त हो गये। तुम्हारी खोज खत्म हो गयी। उसके बाद क्या करोगे?
लाखों सालों की तुम्हारी ट्रेनिंग है सिर्फ खोजने की। तुमएक खोजक की भांति तो एकदम अनुशासित हो पर प्राप्तकर्ता की तरह नहीं। यह बिल्कुल नया है तुम्हारे लिये और तुम इससे नितांत अपरिचित। और सबसे बड़ी बात…खोज उस परम की, परम ईश्वर की, जिसके परे खोजने को कुछ भी नहीं है। उसके बाद क्या करोगे? उसके बाद क्या बनोगे? और यह तो सदैव बनी रहने वाली शून्यता की स्थितिबन जाने वाली है।
वह अपने जूते अपने हाथों में ले लेता है। उसे भय था कि जब वह सीढ़ियाँ उतरता हो तो ईश्वरआहट सुनकर दरवाजा न खोल दे…। और वह बिना पीछे देखे सरपट भाग आया।
कविता बहुत खूबसूरत है क्योंकि यह आगे कहती है -
मैं उसकी खोज में पुनः लग गया हूँ। मैं उसे जान गया हूँ, उसके घर को पहचान गया हूँ अतः उधर जाने से बचने का भरकस प्रयास करता हूँ। मैं हर दिशामें जाता हूँ पर ईश्वर के घर की दिशा से दूर ही रहता हूँ क्योंकि मुझे पता है कि उससे मिलने का मतलब है मेरी समाप्ति।
बुद्धत्व कुछ और नहीं है तुम्हारे खात्मे के सिवा। यह विशुद्ध मौन के अतिरिक्त्त कुछ और नहीं है। प्राकृतिक रुप से मानव डरता है और सोचता है – बुद्धत्व न पाकर इसकी खोज में निरंतर लगे रहना ही श्रेयकर है।
यह जो कथा रबिन्द्रनाथ की कविता की मार्फत मैंने तुम्हे बतायी, यह सभी की कहानी है।
इसीलिये मैं कहता हूँ – तुम बुद्ध हो पर तुम इसे पहचानना नहीं चाहते, स्वीकृति नहीं देना चाहते।
तुम कोई ऐसा रास्ता खोजना चाहते हो जिससे कि तुम बुद्धत्व की खोज बार बार शुरु कर सको।

~ ओशो

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