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Sunday, 26 February 2012

★ भक्ति क्या है ? ★



भक्ति यानी प्रेम–ऊर्ध्वमुखी प्रेम।
भक्ति यानी दो व्यक्तियों के बीच का प्रेम नहीं, व्यक्ति और समाष्टि के बीच का प्रेम।
भक्ति यानी सर्व के साथ प्रेममें गिर जाना। भक्ति यानी सर्व को आलिंगन करने की चेष्टा। और, भक्ति यानी सर्व को आमंत्रण कि मुझे आलिंगन करले !
... भक्ति कोई शास्त्र नहीं है–यात्रा है।
भक्ति कोई सिद्धांत नहीं है–जीवन-रस है। भक्ति को समझ कर कोई समझ पाया नहीं। भक्ति में डूब कर ही कोई भक्ति के राज को समझ पाता है।
नाद कहीं ज्यादा करीब है विचार से। गीत कहीं ज्यादा करीब है गद्य से। हृदय करीब है मस्तिष्क से।
भक्ति-शास्त्र शास्त्रों मेंनहीं लिखा है–भक्तों के हृदय में लिखा है।
भक्ति-शास्त्र शब्द नहीं सिद्धांत नहीं, एक जीवंत सत्यहै।
जहां तुम भक्त को पा लो, वहीं उसे पढ़ लेना; और कहीं पढ़ने का उपाय नहीं है।
भक्ति बड़ी सुगम है लेकिन जिनकी आँखों में आंसू हों, बस उनके लिए !
~ ओशो, प्यारे सद्गुरु

Raman Maharshi

किसी ने रमण महर्षि से पूछा , मैँ बहुत दूर से आया हूँ आप से सीखने ।
मुझे शिक्षा दीजिए ' रमण हँस दिए और बोले , यदि तुम सीखने आए तो किसी दूसरी जगह जाओ क्योँकि हम यहां सीखे को अनसीखा करते है । हम यहां सिखाते नहीँ । तुम बहुत ज्यादा जानते ही हो । यही है तुम्हारी समस्या । ज्यादा सीखने से ज्यादा समस्याएं बढ़ेगी । हम सिखाते है कैसे अनसीखा हुआ जाए , कैसे शांत हूआ जाए

संबोधि का अर्थ

अभी दो दिन पहले पश्चिम से आयी एक युवती को मैँने संन्यास मेँ दीक्षित किया । मैँने उसे नाम दिया " योग संबोधि " । और उससे पूछा कि इसका उच्चारण करना तो सरल तो होगा ना ! उसने कहा " हां , यह तो बिल्कुल अंग्रेजी के शब्द ' Somebody ' जैसा लगता है । लेकिन संबोधि इसके बिल्कुल विपरीत है । जब तुम कोई नहीँ हो जाते हो तब संबोधि घटित होती है ।
संबोधि का अर्थ है बुद्ध होना । यदि तुम कोई हो , संबोधि कभी घटित न होगी । यह कोई हूं - पन ही एक बाधा है ।
Osho

•The death of socrates• ★ OSHO ★


सुकरात मरने के करीब था । उसे जहर दिया जा रहा है । बाहर जहर पीसा जा रहा है । सुकरात लेटा हुआ है । उसके मित्र सब रो रहेँ है । और सुकरात उनसे पूछता है कि तुम रोते क्योँ हो ? तो उन मित्रोँ ने कहा , हम रोयेँ न तो और क्या करे ? तुम मरने के करीब हो । सुकरात ने कहा , पागलोँ , वह तो मैँ जिस दिन जन्मा था , उस दिन रो लेना था क्योँकि जब जन्म शुरु हुआ था तभी मौत शुरु हो गया थ...ा । जब कहानी शुरु होती है तभी उसका अन्त भी आ जाता है । जब परदे पर फिल्म शुरु होती है तभी जान लेना चाहिए कि समाप्ति भी आयेगी । अंत प्रारंभ मेँ ही छुपा हुआ है
सुकरात ने कहा कि जाओ , जल्दी से देखो , जहर तैयार हुआ या नहीँ ? सुकरात खुद उठकर बाहर गया । वह जहर पीसने वाला कहने लगा कि समय हुआ जा रहा है 6 बजे जहर देना है , अभी तक जहर तैयार नही हुआ ? वह जहर पीसने वाला कहने लगा कि मैँने बहुत लोँगो को जहर दिया पर तुम जैसा पागल आदमी नहीँ देखा । हम चाहते है कि तुम थोड़ी देर और जी लो , थोड़ी देर और श्वांसेँ ले लो । इतनी जल्दी क्या है मरने की ? सुकरात कहने लगा , जल्दी कुछ भी नहीँ है । जिन्दगी का सपना बहुत देख चुके , अब नयी कहानी मौत को भी देख लेना चाहते है इसलिए बड़ी उत्सुकता है कि जल्दी एक फिल्म खत्म हो और नयी फिल्म शुरु हो इसलिए हम पूछते है कि जल्दी करो ।
- ओशो, 

★ OSHO ★ जीवन मेँ गम्भीर उदास और मनहूस होने का कोई उपाय ही नहीँ



जीवन मेँ गम्भीर उदास और मनहूस होने का कोई उपाय ही नहीँ । मानव जीवन स्वयं मेँ परमात्मा की अमूल्य देन है जो जैसा पूर्ण है । पूर्ण होने या कुछ होने की चेष्टा ही मानव मेँ तनाव और उदासी पैदा करता है ।
मेरा पूरा जोर है कि तुम अपने भीतर छिपी हंसी और आनंद का अगाध भण्डार की अभिव्यक्त करो ।